Saturday, April 30, 2011

वो 'कल' जो होठों पे 'आज' बन कर मुस्कुरा रहा है ............

जी करता है
रोक लूँ वो लम्हा,
जो चला जा  रहा है.........

गर्भ में अगिनत पल संजोए
एक और अध्याय बंद होने को है,
नया पृष्ठ जो खुला जा रहा है.......

एक नई दस्तक स्वागत में खडी है
कि बढा चल राही नई धुन में,
नई राह कोई सजा रहा है......

नए सपने नए इरादे, नई मंजिलें तय करनी हैं,
हाथ बढा के थाम ले उसको,
वो कल जो तुझको बुला रहा है.......

बस नए मोड पे भूल न जाना
वो बीता कल जो जा रहा है,
वो  'कल' जो होठों पे 'आज' बन कर मुस्कुरा रहा है .............

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