खिडकी के बाहर आज भी चांद है,
छिपा है टहनियों के पीछे
नहीं पता पूरा है या आधा
पर देख सकती हूँ, झुरमुट से झाँकती चांदनी को
इतना तो पता है कि अमावस नहीं है......
कोई और रुख जो करूँ तो
ये काली अँधेरी रात डराने को आतुर लगती है
दूर तक फैले अंधियारे में
सब गुम सा लगता है, पर कुछ हो न हो
इतना तो पता है कि अमावस नहीं है...........
कि पत्तों के ओट से ही सही आती हुई चांदनी
चंद्रमा की सोलह कलाओं को जीवंत करती
पिछली पूर्णिमा को थाम न पाई वक्त मैं
हाँ ये चांद पूनम का तो नहीं ,
पर इतना तो पता है कि अमावस नहीं है...........
हाँ इतना तो पता है कि अमावस नहीं है
कि खिडकी के बाहर अज भी चांद है
काली अंधेरी रात है तो क्या
देख सकती हूँ मैं झुरमुट से झांकती चांदनी को
पूनम नहीं न सही ,
इतना तो पता है कि अमावस नहीं है..........
छिपा है टहनियों के पीछे
नहीं पता पूरा है या आधा
पर देख सकती हूँ, झुरमुट से झाँकती चांदनी को
इतना तो पता है कि अमावस नहीं है......
कोई और रुख जो करूँ तो
ये काली अँधेरी रात डराने को आतुर लगती है
दूर तक फैले अंधियारे में
सब गुम सा लगता है, पर कुछ हो न हो
इतना तो पता है कि अमावस नहीं है...........
कि पत्तों के ओट से ही सही आती हुई चांदनी
चंद्रमा की सोलह कलाओं को जीवंत करती
पिछली पूर्णिमा को थाम न पाई वक्त मैं
हाँ ये चांद पूनम का तो नहीं ,
पर इतना तो पता है कि अमावस नहीं है...........
हाँ इतना तो पता है कि अमावस नहीं है
कि खिडकी के बाहर अज भी चांद है
काली अंधेरी रात है तो क्या
देख सकती हूँ मैं झुरमुट से झांकती चांदनी को
पूनम नहीं न सही ,
इतना तो पता है कि अमावस नहीं है..........
No comments:
Post a Comment