meri kalam se
Saturday, May 14, 2011
यूँ तो मेघ स्वतः घिर आते हैं
हर आंगन खिल उठता है, उस रिमझिम एहसास से
मगर आज क्यूँ लगता है
इस पावस की धनख को शर कहीं और से प्राप्त हुए
जो मन को भेदने निकला है,
कहीं वह प्रियवर का स्नेह तो नहीं ?
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