Friday, April 20, 2012

मौसम की ये पहली बौछार !!!!!!!!!


अभी कल  तक  सारी बातें जैसे भूल सी गई थीं,
उस  मुलाकात  की  यादें धूमिल  हो चुकी थीं,
एहसासों  की नर्मी मायने खो चुकी थी,
कल  के शामियाने  पर  आज  की परत  चढ़ने लगी थी ,

सब छोड़  जिंदगी  आगे  बढ  चुकी थी,
अपने  ही  संजोए सपनों  में नया  रंग  भर चुकी थी,
अब तो दिल  भी  यकीं कर बैठा था .
बसंत की  बयार  में भी झुलसना सीख  चुका  था.

पर आज  मौसम  की ये  पहली   बरसात ,
एक  ही  बौछार में सारी कोशिशें  बहा ले गई.
अरसे  से लगाया बाँध  तोड़ कर ,
भावनाएँ  सैलाब का  रुप ले उमड़  पडी़

वो रात  भर जागती  आखों में  सपने  सजाना,
वो तारों को निहारना , हवा से बतियाना ,
हर बात की सौगात कुछ  ऐसे ले कर  आई  बरसात,
जैसे  बस  अभी की  बात हो..........

पर बरसों  गुज़ र गए  हैं  उस  मुलाकात  को,
तुम्हारी  कही  हुई  हर एक  बात  को ,
हाँ तब  भी तो  बारिश  हो  रही  थी, और  आज
सालों  बाद  भी  सब  फिर  याद  दिलाने आई  है

पर  जब  यादें ही  भीड़  में खो  जाना  चाहती हैं
तो जाने क्यूँ  उन  यादों  को हरा भरा  करने
बादलों  का सीना  चीर ....
 मौसम  की  पहली  बरसात , हर साल  चली  आती है

जाने  क्यूँ  हर साल  चली आती  है , मौसम  की ये पहली बौछार !!!!!!!!!

Sunday, March 18, 2012

निस्संदेह इसी मन की .............!


परिस्थिति की विवशता बन जो
कण  कण  में व्यापित है,
इसी मन की विषमता है वह
निस्संदेह इसी मन की...!

ये मन ही तो स्वयं विकल हो
हर मुस्कुराहट की सत्यता को झुठलाता है,
वन में मयूर बन नॄत्य की आस लिए
अपने ही आज  पर शोक  मनाता है.

वन और पवन के मध्य अपना अस्तित्व टटोलता
रवि की उन नवीन  किरणों पर भी,
उषा के साथ  नित नई फूटतीं कोपलों पर भी
नयन मूंद कर रोता है.

परिस्थिति को सदा प्रतिकूल मान 
स्वयं को परिस्थिति का दास कहता है,
विवशताओं की बेडियों में स्वयं ही जकडकर
हर एक  नन्हीं सी खुशी से  वंचित,

अपने आज में कल और कल में आज को तलाशता ,
चारों ओर चक्रव्यूह रचता है,
पल-पल को जीतकर आगे बढता हुआ  योद्धा भी जो 
चंद  विफलताओं का बोझ  ढोता है......

इसी मन की विषमता है वह
निस्संदेह इसी मन की .............!