Saturday, June 25, 2011

जीने के बहाने लाखों थे मगर...........








जीने के बहाने लाखों थे मगर
जीना ही कभी आया न हमें 

जीवन में अफसाने कितने मगर
इक बारी सुनाना आया न हमें

अगनित साथी मिले राहों में
इक को भी अपनाना आया न हमें 

राहों में फूल बिछे थे मगर
सेज सजाना न आया हमें

अब मायूसी में बैठे रोते हैं
कि जीवन ही रास न आया हमें

जीने के बहाने लाखों थे मगर
जीना ही कभी आया न हमें...........!!

Saturday, June 4, 2011















उन मधुर स्वप्नों की गहराई में 
गोते लगा रहा था मेरा मन
खुशियों के उन फव्वारों के संग
और भी दूर जाने की थी लगन

किसी जलप्रलय ने रोका होता 
तो ढाढस भी बँधा लेती
पर उठा तो था अपने अंदर ही तूफ़ान 
जो धरातल के कठिन सत्य पर ले आया

न तो स्रोत उन स्वप्नों का जाना था 
न कोई कारण तूफ़ान आगमन का
ये कैसी विडम्बना है कि समझ ही न आया 
वे स्वप्न सच थे या धरातल छलावा?

कितनी सरलता से आज फिर अनायास ही
बरस उठे मेघ नभमण्डल से,
बरखा की एक-एक बूंद धरती की प्यास बुझाने
गिरने को तत्पर लगती है

नहीं पता इन बूंदों को
एक प्यास जगा भी देतीं ये
रिमझिम कर तारों को छेड
तेरी याद दिला भी देतीं ये,

किंतु तपती धरा के तर्पण में
मेरी प्यास और भी तीक्ष्ण हुई
इस नयनतल पर ये मेघ तभी छा पाएँगे
जब वो सारे सुहाने पल , इन बाहों में फिर से सिमट के आएँगे..