जीने के बहाने लाखों थे मगर
जीना ही कभी आया न हमें
जीवन में अफसाने कितने मगर
इक बारी सुनाना आया न हमें
अगनित साथी मिले राहों में
इक को भी अपनाना आया न हमें
राहों में फूल बिछे थे मगर
सेज सजाना न आया हमें
अब मायूसी में बैठे रोते हैं
कि जीवन ही रास न आया हमें
जीने के बहाने लाखों थे मगर
जीना ही कभी आया न हमें...........!!