Saturday, June 25, 2011

जीने के बहाने लाखों थे मगर...........








जीने के बहाने लाखों थे मगर
जीना ही कभी आया न हमें 

जीवन में अफसाने कितने मगर
इक बारी सुनाना आया न हमें

अगनित साथी मिले राहों में
इक को भी अपनाना आया न हमें 

राहों में फूल बिछे थे मगर
सेज सजाना न आया हमें

अब मायूसी में बैठे रोते हैं
कि जीवन ही रास न आया हमें

जीने के बहाने लाखों थे मगर
जीना ही कभी आया न हमें...........!!

1 comment:

  1. जीवन का धरातल तो अभी आया भी नहीं है | शायद रास्ते में जीना भी आ जाए | :D

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