गोते लगा रहा था मेरा मन
खुशियों के उन फव्वारों के संग
और भी दूर जाने की थी लगन
किसी जलप्रलय ने रोका होता
तो ढाढस भी बँधा लेती
पर उठा तो था अपने अंदर ही तूफ़ान
जो धरातल के कठिन सत्य पर ले आया
न तो स्रोत उन स्वप्नों का जाना था
न कोई कारण तूफ़ान आगमन का
ये कैसी विडम्बना है कि समझ ही न आया
वे स्वप्न सच थे या धरातल छलावा?
khubsurat behad khubsurat
ReplyDelete