एक वो मासूम सा चेहरा है
निश्छल प्रेम की भाषा है
दो भोले नयनों की बोली में
जाने क्या क्या कह जाते हो
होठों के कोरों पे बिखरी मुस्कान
तृप्ति की नई परिभाषा है
मजबूत से उन दो कन्धों पे , रखूँ जो सिर
दुनिया की फ़िकर मिट जाती है
हाथों में हाथ जो लेते हो
राहों को दिशा मिल जाती है
इतना बना लिया कब अपना
हर साँस मिलने को तरसती है।
निश्छल प्रेम की भाषा है
दो भोले नयनों की बोली में
जाने क्या क्या कह जाते हो
होठों के कोरों पे बिखरी मुस्कान
तृप्ति की नई परिभाषा है
मजबूत से उन दो कन्धों पे , रखूँ जो सिर
दुनिया की फ़िकर मिट जाती है
हाथों में हाथ जो लेते हो
राहों को दिशा मिल जाती है
इतना बना लिया कब अपना
हर साँस मिलने को तरसती है।