Sunday, May 10, 2015

आक्रोश है या उन्माद है
गतिवत हवा में  जो राग है

बजाये है धुन कोई और ही
और थिरक उठीं मंजरियाँ बेसुध पड़ी

खुल जो गए झरोखे सभी
(जाने कब से सीलबंद कोठरी के )
रौशनदान भी हतप्रभ निहार रहा। …।!!

No comments:

Post a Comment