आक्रोश है या उन्माद है
गतिवत हवा में जो राग है
बजाये है धुन कोई और ही
और थिरक उठीं मंजरियाँ बेसुध पड़ी
खुल जो गए झरोखे सभी
(जाने कब से सीलबंद कोठरी के )
रौशनदान भी हतप्रभ निहार रहा। …।!!
गतिवत हवा में जो राग है
बजाये है धुन कोई और ही
और थिरक उठीं मंजरियाँ बेसुध पड़ी
खुल जो गए झरोखे सभी
(जाने कब से सीलबंद कोठरी के )
रौशनदान भी हतप्रभ निहार रहा। …।!!
No comments:
Post a Comment