आँखें नम हैं कुछ ऐसे आज जैसे
बरसात हो चुकी हो चंद पल पूर्व
परन्तु हरित कोमल सी कोपल के
कोर से बूँदें , अब भी टपकने को व्याकुल हैं।
जैसे काले जलधरों के झुण्ड को
किसी मनोरम पहाड़ी की चोटी के
बस छू देने भर की देरी हो
Jaise unche पर्वत ke shikhar par
जमी बर्फ सूरज के स्पर्श से
जलमय होनe ko tatpar ho
गलती न तो पहाड़ ki thi
न ही सूरज की …
पर क्या कहें समय के करतब ,
पानी तो छलक ही पड़ा ........ !!
बरसात हो चुकी हो चंद पल पूर्व
परन्तु हरित कोमल सी कोपल के
कोर से बूँदें , अब भी टपकने को व्याकुल हैं।
जैसे काले जलधरों के झुण्ड को
किसी मनोरम पहाड़ी की चोटी के
बस छू देने भर की देरी हो
Jaise unche पर्वत ke shikhar par
जमी बर्फ सूरज के स्पर्श से
जलमय होनe ko tatpar ho
गलती न तो पहाड़ ki thi
न ही सूरज की …
पर क्या कहें समय के करतब ,
पानी तो छलक ही पड़ा ........ !!
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