Sunday, May 10, 2015

आँखें नम हैं कुछ ऐसे आज जैसे
बरसात हो  चुकी हो चंद पल पूर्व
परन्तु हरित कोमल सी कोपल के
कोर से बूँदें , अब भी टपकने को व्याकुल हैं।

जैसे काले जलधरों के झुण्ड को
किसी मनोरम पहाड़ी  की चोटी के
बस छू देने  भर की देरी हो

Jaise unche पर्वत ke shikhar par
जमी बर्फ सूरज के स्पर्श से
जलमय होनe ko tatpar ho

गलती न तो पहाड़ ki thi
न ही सूरज की …
पर क्या कहें समय के करतब ,
पानी तो छलक ही पड़ा ........  !!

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