इक मूरत बिठाई थी मन में ,
आठों पहर भी बोलूँ तो कम है ,
पूजा करती थी उसको ....
आज अचानक सोच बैठी तो ,
खयाल आया धूल की एक परत जमी है ,
कम-से-कम "२ इंच " तो रही होगी .
द्वंद्व उठा मन में ,
दिल ने कहा वो परत हटा ,
पर जाने क्यूँ ,इक और चादर से ढक आई मैं ?
वो सूरत जो न कुछ सुनती है ,न बोलती है
न मन के भाव ही तोलती है .......
अपने मन की एक पूरी कोठरी ...क्यूँ दूँ मैं उसे ??
आठों पहर भी बोलूँ तो कम है ,
पूजा करती थी उसको ....
आज अचानक सोच बैठी तो ,
खयाल आया धूल की एक परत जमी है ,
कम-से-कम "२ इंच " तो रही होगी .
द्वंद्व उठा मन में ,
दिल ने कहा वो परत हटा ,
पर जाने क्यूँ ,इक और चादर से ढक आई मैं ?
वो सूरत जो न कुछ सुनती है ,न बोलती है
न मन के भाव ही तोलती है .......
अपने मन की एक पूरी कोठरी ...क्यूँ दूँ मैं उसे ??
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