मंद चल रही थी पवन ,
घटा ने रोक , पूछा ..
"क्यूँ री बाँवरी ,किधर चली?"
हवा ने सुदूर एक पहाड़ी को दिखा ,
इशारे में कहा-
"वही लक्ष्य है मेरा"
"कौन तके है राह तुम्हारी?"
बादल फिर इतराया .
पवन की दृढ़ता पर कटाक्ष करता !
हवा मुस्कुरायी ....
"बाट तो कोई तेरी भी न जोहे यहाँ ,
जो चाहे तो संग हो ले "
जो कुछ कहते न बनी
तब जलधर से ,हामी भरी ,
और साथ चल पड़ा ..
गाती-गुनगुनाती बढ़ चली पवन ,
पर ज्यों ही पहाड़ी करीब आती दिखी
बादल का सर चकराया ..!
पयोद की दशा देख ,बोल पड़ी वायु -
"भय जो अगर घर कर गया हो मन में ,
तो मैं बिलकुल न बुलाऊँगी .."
"पर जलविहीन होना तो तुम्हारी नियति है ,
लक्ष्य प्राप्ति की राह में ,
कुछ अभागों को जीवन दे सको ..तो इससे बड़ा क्या गौरव ?
और न मंजूर हो तो चंद दिन मौज के गुजार ले
भीगे हुओं पर बूँद बन बरसना
सड़क के बाजू की पोखर जगह तो फिर भी दे देगी !"
सकुचित पयोद ने कदम रोक लिए फिर भी ...
हवा तो तब से अब तक गतिमान है ,
परन्तु बदल आज तक रोता आया है ...!
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