दिल में बडी विचित्र-सी उलझन है
न जाने कैसा सूनापन है
क्यूँ निराश हुआ ये मन है, कोई तो बता दे!
मायूसी का सागर खडा सामने
मानो आगोश में लेने को है ,
एक भँवर-सा उठा जा रहा, कोई तो रोक ले!
जैसे कोई सपना टूटा हो
टुकडे संजोते हाथों को चुभते हैं
या फिर कोई अपना रूठा हो, कोई तो मना ले!
कश्ती पडी है मझधार में,कोई तो बचा ले!
एक लौ रौशनी की जला कर , मुस्कुराने की वजह दे!
मुस्कुराने की कोई तो वजह दे....
न जाने कैसा सूनापन है
क्यूँ निराश हुआ ये मन है, कोई तो बता दे!
मायूसी का सागर खडा सामने
मानो आगोश में लेने को है ,
एक भँवर-सा उठा जा रहा, कोई तो रोक ले!
जैसे कोई सपना टूटा हो
टुकडे संजोते हाथों को चुभते हैं
या फिर कोई अपना रूठा हो, कोई तो मना ले!
कश्ती पडी है मझधार में,कोई तो बचा ले!
एक लौ रौशनी की जला कर , मुस्कुराने की वजह दे!
मुस्कुराने की कोई तो वजह दे....
No comments:
Post a Comment