कहीं बहुत दूर आ गए हैं
मुडकर देखना भी दुश्वार लगता है...
कि सोचा ही नहीं था ,ऐसा मकाम भी होगा
तारे ही नहीं मेरा तो सारा आसमान होगा....
जब ज़मीं पर बैठे देखते थे
फ़लक पहुँच से परे लगता था.....
सारी जद्दोज़हद धरती पे दिखती थी
दिल-ए-नादान कहीं जन्नत तलाशता था...
पर इन बुलंदियों को पाकर महसूस हुआ आज
सितारा भी गर्दिश में हो सकता है....
हाँ फर्क बस इतना है...................
सिर छुपाने के लिए , उसके पास आसमां भी नहीं होता है!
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